MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।

उत्तर -

शहरी वर्ग और सामाजिक गतिशीलता

भारत में शहरी केन्द्र युगों से रहे हैं। अब, देश की लगभग एक चौथाई आबादी कस्बों और शहरों में रहती है। शहरी लोग अधिकतर औद्योगिक और सेवा के क्षेत्र में काम करते हैं, जबकि देहाती क्षेत्र के लोग अधिकतर कृषि और सम्बन्धित क्षेत्र में काम करते हैं। आजादी के बाद भारत सरकार ने जो औद्योगिक नीति बनायी उसका लक्ष्य तेज औद्योगिकरण के जरिये देश का आर्थिक विकास करना है। 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' की इस नीति में एक ऐसे ढाँचे की व्यवस्था है जिसके तहत सामाजिक-आर्थिक विकास के काम को अंजाम देना है।

सामाजिक वर्ग : विविध परिप्रेक्ष्य

आजादी के बाद देश में औद्योगीकरण और शहरीकरण की गति में तेजी आने के साथ, यहाँ तीन मुख्य शहरी सामाजिक वर्गों पूँजीवादी या बुर्जुआ, मजदूर वर्ग या सर्वहारा और मध्यम वर्ग की संख्या और प्रभाव में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है।

पूँजीवादी वर्ग देश का सबसे शक्तिशाली वर्ग है। उनके पास औद्योगिक व्यापारिक और वित्तीय उद्यमों का स्वामित्व या नियंत्रण है। पूँजीवादियों का एकमात्र ध्येय निजी मुनाफे को अधिक से अधिक करना है, जो पूँजीवाद का बुनियादी सिद्धान्त है। वे मजदूरों को उनके द्वारा बनाये गये सामानों या उनकी सेवाओं की तुलना में कहीं कम पैसे देकर उनका शोषण करते हैं। जमींदारों और धनी किसानों के साथ सांठ-सांठ करके, वे अपने हितों के लिए व साधनों की गरज से राज्य की मशीनरी पर कब्जा जमा लेते हैं। वे अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए राजनीति, नौकरशाही और व्यावसायिक स्तरों के प्रभुत्वशाली लोगों के साथ घनिष्ठ सहयोग और सम्पर्क साधकर प्रौद्योगिक जानकारी और पूँजी निवेश हासिल कर लेते हैं, जिससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और जीवन में उनका प्रभुत्व और मजबूत हो जाता है।

शहरी मजदूर वर्ग में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के देहाड़ी मजदूर आते हैं। इस वर्ग में स्वतः नियोजित मजदूर जैसे खोमचे वाले, फेरीवाले, रेहड़ी वाले और रिक्शा वाले आदि भी आते हैं। इस वर्ग के बहुत ही कम लोग संगठित क्षेत्र में काम करते हैं। जो जैसे-तैसे अपना गुजारा कर लेते हैं लेकिन शहरी सर्वहारा की एक बहुत बड़ी संख्या असंगठित क्षेत्र में काम कर रही है। शहरी मजदूर वर्ग गरीब, अशक्त और वर्णीय आधार पर अत्यधिक असंगठित है।

मध्यम वर्ग की स्थिति में आजादी के बाद बेहतरी आयी है। वे उत्पादन की प्रक्रिया से सीधे-सीधे नहीं जुड़े हैं। वे नौकरशाही, अध्यापन, पत्रकारिता, डाक्टरी और कई अन्य सेवाओं में लगे हैं वे उद्योगों में क्लर्की, निरीक्षण और अधिशासी स्थितियों में भी लगे हैं। मध्यम वर्ग के कुलीन वर्ग के लोग संख्या में बहुत कम हैं और उनकी जीवन दशा बेहतर है।

सामाजिक गतिशीलता

बढ़ते शहरीकरण, उद्योगीकरण और आधुनिकीकरण के कारण समस्तर और उर्ध्वाधर दोनों प्रकार की गतिशीलता संभव हुई है। रोजगार के नये अवसर और रास्ते खोल कर व्यवसाय के क्षेत्र में जो विविधता बनी उसने इस प्रक्रिया को सुगम कर दिया है। व्यक्तियों की सामाजिक गतिशीलता एक से दूसरी पीढ़ी के बीच अधिक है, एक ही पीढ़ी के व्यक्तियों के बीच कम। छोटे सामाजिक समूह और समुदाय भी वर्ग की सीमाओं के पास गतिशीलता पाने में समर्थ हुए है। जाति, समुदाय, गाँव, पड़ोस, परिवार, धर्म और क्षेत्र के विशिष्ट बंधनों ने सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी, कुल मिलाकर सामाजिक गतिशीलता की दर बहुत कम रही है। पारंपरिक रूप से अच्छी स्थिति वाले वर्गों ने नये वर्गीय ढांचे में बेहतर स्थान प्राप्त कर लिये हैं। लेकिन पारंपरिक रूप से प्रतिकूल परिस्थति में रहने वाले लोग आज भी निम्न स्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

उद्योगपतियों (पूंजीपतियों) की पृष्ठभूमि का आकलन करने से पता चलता है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में कुछ विशेष जातियों और समुदायों का प्रभुत्व है। पूँजीवादी वर्ग के लोग अधिकतर ऊँची जातियों के हैं। कलकत्ता में मारवाड़ियों का प्रभुत्व है, तो पश्चिम में गुजराती बनियों का, दक्षिण में चेतियारों का, और उत्तर में अग्रवालों और अन्य बनिया समुदायों का लेकिन कुछ उदाहरण ऐसे भी मिल जाते हैं, जिनमें कुछ कारीगर और दस्तकार समुदायों ने उद्योग में कामयाबी हासिल की और उन्होंने ऊपर की ओर (उर्ध्वगामी) गतिशीलता बनायी। सतीश सबरलवार ने पंजाब में रामगरीया कारीगरों के उद्योगपति बन जाने के तथ्य को रेखांकित किया है। आगरा में ओ०पी० लिंच ने पाया कि नीची जाति के जाटवों ने जूता बनाने का उद्योग अपना लिया। लेकिन कारीगर और दस्ताकर लोग अधिकतर लघु स्तर के क्षेत्र में मिलते हैं। किसी विशेष समुदाय के कुछेक व्यक्ति या परिवार ही सबसे ऊँचे वर्ग में पहुँच पाये हैं। इसके अलावा, यह देखा गया है कि कुछ भू-स्वामी जातियाँ भी उद्योग के क्षेत्र में जा रही हैं। इस कोटि में हावड़ा के उद्योगपति, गुजरात के पटेदार, और आंध्र और तमिलनाडु के रेड्डी और नायडू आते हैं। कुछ ऊँची जातियों और समुदाय, जैसे ब्राह्मण और सीरियन ईसाई भी हाल के वर्षों में उद्योग के क्षेत्र में आ रहे हैं। मजदूर वर्ग में मुख्य तौर पर शहरी और देहाती क्षेत्र में इसके अपने ही वर्ग के लोग आते हैं। हम देखते हैं कि मध्यम वर्ग के निचले स्तरों के कुछ व्यक्ति सर्वहारा वर्ग में आ गये हैं। मजदूर वर्ग के कुछ व्यक्ति भी मध्यम वर्ग में चले जाते हैं। लेकिन सर्वहारा और बुर्जुआ वर्गों के बीच व्यक्तियों या परिवारों या समूहों की उर्ध्वाधर गतिशीलता बहुत ही कम देखने में आती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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